क्या चर्च और पादरी उसी तरह पाक-साफ होते हैं जैसे कि उन्हें हिंदी फिल्मों में चित्रित किया जाता है? अधिकांश भारतीय फिल्मों में अक्सर मंदिरों-मठों को लंपटों का अड्डा और ब्राह्मणों को पतित दिखाया जाता है। किसी दुर्घटना की शिकार महिला जब किसी मंदिर में शरण लेती है तो अक्सर धोती और तिलकधारी पुजारी या मठाधीश उसकी इज्जत लूट लेते हैं। इसके विपरीत जो महिला चर्च की शरण में चली जाती है, वहां करुणा के सागर पादरी उसकी देखभाल करते हैं। मंदिर, मठ और चर्च ईश्वर रचित संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि मनुष्यों द्वारा स्थापित की गई हैं और इसीलिए उनमें मानवीय कमजोरियां प्रतिबिंबित भी होती हैं। यह धारणा कि मनुष्य की कमजोरियां केवल मंदिरों-मठों में दिखाई देती हैं और सभी चर्च, पादरी व नन पाक-साफ हैं, सत्य से परे है।
वस्तुत: चर्च तो मानवीय कमजोरियों का सबसे बड़ा शिकार है, क्योंकि वहां गोपनीयता की व्यवस्था है, जिसमें अंदर की बुराइयां उजागर नहीं करने की प्रतिबद्धता है।
मलयालम भाषा में आमीन नाम से प्रकाशित डा. सिस्टर जेस्मे की आत्मकथा इस कटु सत्य की पुष्टि करती है। सिस्टर जेस्मे अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं और त्रिसूर में चर्च द्वारा चलाए जाने वाले विमला कालेज की प्राचार्या थीं। तीस सालों तक चर्च की सेवा करने के बाद अंतत: उन्होंने चर्च के अंदर ननों के साथ होने वाले अनाचार का खुलासा करने का दुस्साहस किया।
केरल का कैथोलिक चर्च इन दिनों ऐसी ही खबरों के लिए चर्चा में है। सिस्टर अभया हत्याकांड में अंतत: सोलह साल बाद विगत 19 नवंबर को दो पादरियों व एक सिस्टर को गिरफ्तार कर लिया गया। 17 मार्च, 1992 को पायस कान्वेंट में कार्यरत सिस्टर अभया की लाश परिसर में ही स्थित एक कुएं से बरामद की गई थी।
हालांकि चर्च के दबाव में पुलिस ने पहले तो इसे आत्महत्या साबित कर केस बंद करना चाहा, किंतु न्यायालय की सक्रियता के कारण अंतत: सीबीआई को सच सामने लाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
हाल ही में पार्ट कोल्लम स्थित सेंट मैरी कान्वेंट की सिस्टर अनूपा मैरी की कथित आत्महत्या के पीछे भी चर्च में व्याप्त यौन शोषण ही प्रमुख कसूरवार है। मैरी के परिजनों ने चर्च के वरिष्ठ पादरी और सिस्टरों द्वारा मैरी का शारीरिक, मानसिक व यौन शोषण करने का आरोप लगाया है।
चर्च जिस गोपनीयता की संस्कृति से अपने अनुयायियों को दीक्षित करता है उससे ऐसे कई मामले दबे ही रह जाते हैं। रोमन कैथोलिक चर्च में जब कार्डिनल बनाए जाते हैं तब वे पोप के समक्ष वचन लेते हैं कि वे हर उस बात को गुप्त रखेंगे जिसके प्रकट होने से चर्च की बदनामी होगी या उसे नुकसान पहुंचेगा। यही कारण है कि यौन शोषण की बात उजागर होने के बावजूद सत्य को छिपाना ही प्रथम कर्तव्य माना जाता है।
आश्चर्य नहीं कि तीस वर्ष की आयु में पहली बार यौन शोषण की शिकार होने के बावजूद सिस्टर जेस्मे इतने वर्षाें तक मौन रहीं। पादरी द्वारा पहली बार यौन शोषण करने पर तो वह खामोश रह गई थीं, किंतु जब एक नन ने उनसे समलैंगिक संबंध बनाए तो उन्होंने इसकी शिकायत एक वरिष्ठ नन से की। उक्त नन ने जेस्मे को सलाह दी कि ऐसे संबंध बेहतर हैं, क्योंकि इससे गर्भवती होने का खतरा नहीं है।
चर्च सिद्धांतत: पादरियों-ननों के ब्रह्मचर्य व्रती होने का दावा करता है, किंतु यथार्थ यह है कि अनेक चर्च में दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विपरीत लिंगी यौन संसर्ग से लेकर बाल यौन शोषण व समलैंगिक यौन की घटनाएं सामने आई हैं।
यौन शोषण करने वाले पादरी अपने शिकार सर्वाधिक प्रबल भक्तों में से ही चुनते हैं। इन भक्त परिवारों को पीढि़यों से सिखाया जाता है कि पादरियों पर विश्वास करें और उन्हें पूरा सम्मान दें। चर्च की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि मानने वाले बिशप पीडि़त परिवारों के दिमाग में यह बात बैठा देते हैं कि बात खुलने पर लोगों की आस्था को चोट पहुंचेगी। करोड़ों रुपये हर साल इस तरह के मामले में चर्च मुआवजे के रूप में खर्च करता है। चर्च के अधिकारी इस तरह से धन देने का उद्देश्य पीडि़त व्यक्ति को चिकित्सा व संबल प्रदान करना बताते हैं, किंतु इसका वास्तविक उद्देश्य मामले को किसी तरह शांत करना और अन्य पीडि़त व्यक्तियों को सामने आने से रोकना है।
एक अंग्रेजी दैनिक को दिए गए साक्षात्कार में सिस्टर जैस्मे ने बताया कि सिस्टर अभया हत्याकांड को दबाने के लिए चर्च ने करोड़ों रुपये खर्च किए। हमारे देश में यौन शोषण की कई ऐसी खबरें प्रकाशित होती रही हैं, किंतु चूंकि भारतीय ईसाई चर्च के प्रभाव में हैं इसलिए ज्यादातर मामले दबे ही रह जाते हैं। जो मामले प्रकाश में आते हैं उन्हें हमारे छद्म पंथनिरपेक्षतावादियों के कारण न्याय नहीं मिल पाता। वे फौरन ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को हिंदूवादी संगठनों की साजिश बताकर चर्च को बदनाम करने की कोशिश करार देते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान के भवानीखेड़ा गांव के मिशनरी स्कूल के प्रबंधक मेल्विन डिसिल्वा को यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस घटना की रिपोर्टिग करते हुए एक टीवी न्यूज चैनल ने कहा था, हिंदुत्व के प्रचार के लिए राजस्थान के ईसाई समुदाय अब सबसे बड़े लक्ष्य हैं। पिछले महीने अजमेर के एक गांव के मिशनरी स्कूल के पादरी को छात्रों के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तब से हिंदू संगठन ईसाई मत में दीक्षित लोगों को पुन: हिंदू पंथ से वापस लाने की मुहिम में जुट गए हैं। मीडिया का यह रवैया आज भी बरकरार है।
अपने यौनाचार को आध्यात्मिक मिलन बताने वाले पादरियों की बर्बरता का खुलासा रोम के दैनिक ला रिपब्लिका में प्रकाशित एक रिपार्ट से हुआ था। 23 देशों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया गया था कि पादरी ननों को गर्भनिरोधक गोलियां लेने पर मजबूर करते हैं। एक मामले का उल्लेख करते हुए बताया गया कि गर्भनिरोधक गोलियां लेने के बावजूद एक गर्भवती नन को गर्भ गिराने के लिए मजबूर किया गया। गर्भपात के दौरान नन की मौत हो गई। किस संयम व तपी जीवन का प्रमाण है यह? चर्च की अधिनायकवादी मानसिकता खुद अपनी पवित्र बाइबिल के प्रति कितना समर्पित है? बाइबिल के पहले अध्याय-जेनेसिस (उत्पत्ति) में ही परमेश्वर ने कहा है-पुरुष का अकेला रहना उचित नहीं है। मैं उसके लिए उपयुक्त सहायक बनाऊंगा। परमेश्वर ने पुरुष की पसली से ही एक पसली निकाल कर स्त्री बनाई। इस दैहिक आवश्यकता और सृष्टि की निरंतरता को नकारते हुए कैथोलिक चर्च अपना अधिनायकवाद चलाता है।
चर्च की हठधर्मिता के कारण ही अधिकांश कैथोलिक पादरी यौन कुंठा और विक्षिप्तावस्था में जी रहे हैं। इसी यौन कुंठा के कारण जब यौन शोषण की घटनाएं सामने आती हैं तो सच का सामना करने के बजाय अकूत धनराशि के दम पर चर्च अपनी साख बचाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर घटना पर पर्दा डालने की कोशिश करता है। यह चर्च की नैतिकता का कटु सत्य है।
मंगलवार, 3 मार्च 2009
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